एक गुल खिलाने की कोशिश किया था तिरे दिल के गुल-दान में
बस यूँ ही झुलस कर रह गया तिरे आग-ए-मुंतज़िर वीरान में .
@कमल
My freedom flows like a river...... Through the green........ My river takes all the dirt....... The human-sin........ I love to run free....... On the earth-........ Through the grass, sand and mud....... The wildest forest with a rain bath....... Silver beams coming through the leaves....... And a silence of the holy peace........ I love to run free........… kamal
अदाओं पे उनकी
हम पागल हो
चुके थे
कभी न बरसने
वाला बादल हो
चुके थे
नज़रो कि तिर
से घायल हो
चुके थे
बस उनके पैरों
की पायल हो
चुके थे
गैर कश्ती को न
मिलनेवाला साहिल हो चुके
थे
हम खुद ही
दिलके अपने कातिल
हो चुके थे
रात की खामोशी
के संगेदिल हो
चुके थे
उन्हें दिल देकर
हम बे-दिल
हो चुके थे।।
@कमल नूहिवाल " धरमवीर "