Wednesday, September 30, 2020

 

एक  गुल खिलाने  की  कोशिश  किया था  तिरे  दिल  के  गुल-दान में 

बस यूँ ही झुलस कर रह गया  तिरे  आग--मुंतज़िर  वीरान  में .

 

@कमल

 

 

यूँ तो बातें बहुत थी करने को

सजा कर रखे भी थे अल्फ़ाज़ों को

डरते हैं कहीं बुरा न लगे -

हम खुद ही रुसवा न करदें अपने जज़्बातों को

हम अपनी बातें सरेआम करते गए

वो तरसते रहे हमारे लिफाफों को।।   

 

@कमल

 

अदाओं पे उनकी हम पागल हो चुके थे
कभी बरसने वाला बादल हो चुके थे

नज़रो कि तिर से घायल हो चुके थे
बस उनके पैरों की पायल हो चुके थे

गैर कश्ती को मिलनेवाला साहिल हो चुके थे
हम खुद ही दिलके अपने कातिल हो चुके थे

रात की खामोशी के संगेदिल हो चुके थे
उन्हें दिल देकर हम बे-दिल हो चुके थे।।

@कमल नूहिवाल " धरमवीर "


 

 

इस क़दर भी खंजर चलाओ दिलपे

की मिरे इख़्तिताम पर  आब--दरिया सुर्ख हो जाये ...

 

 

@कमल नूहिवाल "धरमवीर"

 


 


 

ज़रा आहिस्ते डालो साक़ी शहद--शराब पैमाने में

हम तो ज़हर पीकर भी बख़ूबी ज़िंदा हैं इक ज़माने से।।

 

@कमल नूहिवाल "धरमवीर"