ज़रा इतना तो बता दो साकी क्या मिलाया है ज़ाम में
आज उनके अजब सी अकड़ की बुँ आ रही है।
यूँ तो वो भी रश्क-ए-महताब हैं इस बज़्म-ए-शाम में
मुझको ही क्यों उनकी याद-ए-गुफ़्तगू सता रही है।
निगह-ए-शौक़ मैंने भी देखा है उनके हर इक पैग़ाम में
फिर क्यूँ नम ऑंखें ये मिरी ग़म-ए-आंसू बहा रही है।
सितम उनके भी हर अपनाये मैंने इश्क़ के इनाम में
फिर क्यूँ दिल की आहें असीर-ए-जुस्तजू जता रही है।
एक और पैमाना भरदे साकी उनके दुआ-ओ-सलाम में
ज़िन्दगी आज फिर "धरम" से होनेको रू-ब-रू आ रही है।
- कमल नूहिवाल "धरमवीर"
Wednesday, October 7, 2020
Monday, October 5, 2020
मेरे ख़्वाबों को हर सजाए जो ज़ीनत का कभी दीदार न मिला
शहर उजड़े थे पर ख्वाईशें अपनी दफ्नाऊं ऐसा मज़ार न मिला
उनके वाबस्ता गुल-ऐ-सौगात हो ऐसा कोई गुलज़ार न मिला
मेरी उल्फ़त का जो उनसे ज़िक्र करे ऐसा कोई तरफ़दार न मिला
हम तरसते ही रहे और उनकी नज़रों का इक इकरार न मिला
दिल की हसरतें ईबादत में बयां हो ऐसा कोई दरबार न मिला
इश्क़ चाहत है ग़र इज़हार-ऐ-इश्क़ का कोई क़िरदार न मिला
मिरी धड़कन को समझे जो ऐसा भी कोई दिलदार न मिला
हुस्न के बाज़ार में दिल के ज़ख्मो का कोई ख़रीदार न मिला
इतना तो वाज़िब है की मुझसा भी कोई तलबग़ार न मिला।।
-कमल नूहिवाल " धरमवीर "
Wednesday, September 30, 2020
अदाओं पे उनकी
हम पागल हो
चुके थे
कभी न बरसने
वाला बादल हो
चुके थे
नज़रो कि तिर
से घायल हो
चुके थे
बस उनके पैरों
की पायल हो
चुके थे
गैर कश्ती को न
मिलनेवाला साहिल हो चुके
थे
हम खुद ही
दिलके अपने कातिल
हो चुके थे
रात की खामोशी
के संगेदिल हो
चुके थे
उन्हें दिल देकर
हम बे-दिल
हो चुके थे।।
@कमल नूहिवाल " धरमवीर "