Monday, October 5, 2020

 

मेरे ख़्वाबों को हर सजाए जो ज़ीनत का कभी दीदार मिला

शहर उजड़े थे पर ख्वाईशें अपनी दफ्नाऊं ऐसा मज़ार मिला 

 

उनके  वाबस्ता गुल--सौगात हो ऐसा कोई गुलज़ार मिला 

मेरी उल्फ़त का जो उनसे ज़िक्र करे ऐसा कोई तरफ़दार मिला

 

हम तरसते ही रहे और उनकी नज़रों का इक इकरार मिला

दिल की हसरतें  ईबादत में बयां हो ऐसा कोई दरबार मिला

 

इश्क़ चाहत है ग़र इज़हार--इश्क़ का कोई क़िरदार मिला

मिरी  धड़कन को समझे जो ऐसा भी कोई दिलदार मिला

 

हुस्न के बाज़ार में दिल के ज़ख्मो का कोई ख़रीदार मिला

इतना तो वाज़िब है की मुझसा भी कोई तलबग़ार मिला।।

 

-कमल नूहिवाल " धरमवीर " 


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