ज़रा इतना तो बता दो साकी क्या मिलाया है ज़ाम में
आज उनके अजब सी अकड़ की बुँ आ रही है।
यूँ तो वो भी रश्क-ए-महताब हैं इस बज़्म-ए-शाम में
मुझको ही क्यों उनकी याद-ए-गुफ़्तगू सता रही है।
निगह-ए-शौक़ मैंने भी देखा है उनके हर इक पैग़ाम में
फिर क्यूँ नम ऑंखें ये मिरी ग़म-ए-आंसू बहा रही है।
सितम उनके भी हर अपनाये मैंने इश्क़ के इनाम में
फिर क्यूँ दिल की आहें असीर-ए-जुस्तजू जता रही है।
एक और पैमाना भरदे साकी उनके दुआ-ओ-सलाम में
ज़िन्दगी आज फिर "धरम" से होनेको रू-ब-रू आ रही है।
- कमल नूहिवाल "धरमवीर"
Wednesday, October 7, 2020
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